Yajnopavita (उपनयन संस्कार) – एक वैदिक दीक्षा

“गायत्री मंत्र का प्रथम अधिकार तभी मिलता है जब यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।”
यज्ञोपवीत संस्कार (उपनयन) हिन्दू धर्म के 16 प्रमुख संस्कारों में से एक है। यह बालक को ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश कराने वाला आध्यात्मिक संस्कार है, जिसमें उसे शिक्षा, संयम, जप और वेदाध्ययन का अधिकार मिलता है। यह विशेष रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग के लिए आवश्यक माना जाता है।
यज्ञोपवीत क्या है?
यज्ञोपवीत एक पवित्र सूत्र (जनेऊ) है, जिसे बाएं कंधे से दाहिने कूल्हे तक धारण किया जाता है। यह त्रैवर्णिक जातियों के लिए वैदिक ज्ञान और धर्म के अभ्यास की पात्रता का प्रतीक होता है।
उपनयन (Upanayanam) संस्कार की विशेषताएं
- बालक को गायत्री मंत्र का उपदेश दिया जाता है
- उसे आचरण, संयम, ब्रह्मचर्य आदि की शिक्षा दी जाती है
- गुरु और माता-पिता से आशीर्वाद एवं दीक्षा प्राप्त होती है
- आध्यात्मिक जीवन की ओर पहला कदम
- समाज में धार्मिक जिम्मेदारी निभाने की पात्रता
उपनयन संस्कार कब कराना चाहिए?
- सामान्यतः बालक के 8 वर्ष की आयु में संस्कार होना शुभ माना जाता है
- लेकिन आवश्यकता अनुसार यह युवावस्था में भी किया जा सकता है
- गकिसी विशेष मांगलिक अवसर (गुरुपुष्यमृत, अक्षय तृतीया, उत्तरायण आदि) पर भी किया जा सकता है
- आध्यात्मिक जीवन की ओर पहला कदम
- समाज में धार्मिक जिम्मेदारी निभाने की पात्रता
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